*दोहा सृजन हेतु शब्द--*
*रोटी, गुलाब, मुँडेर, पाती, पलाश*
1 रोटी
रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।
मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।
2 गुलाब
मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।
ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।
3 मुँडेर
कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।
खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।
4 पाती
पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।
होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।
5 पलाश
मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।
साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार ।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "