जब भी मैंने रखा
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अगर उसकी मजबूरियों में ‘काश:’ नहीं होता,
तो वह कीमती लम्हा कभी छूट नहीं जाता।
रास्ते में पड़े हुये पत्थरों पर कोई निंशा भी होता,
तो मंजिल तक पहुंचना कभी टूट नहीं जाता।
जब भी मैंने रखा कोई आशिंया बनाने का ख्याल,
तेरी अगर, मगर और शायद में यह इरादा टूट क्यों जाता?
अगर न होते तेरी जिन्दगी में यूं बेवफाई के इरादे,
तो साथ चलता हुआ ये दरिया कभी ठहर नहीं जाता।
गर होती तेरी चाहतों में ज़रा भी प्यार की संजींदगी,
तो तेरे गुणा-भाग में मेरी खताओं का हिसाब नहीं होता।
तूने तो खेला था सिर्फ खेल, चांदनी की रश्मियों से,
कद्र की होती गर चांद की, आंगन में तेरे फिर यह ठहर नहीं जाता।
- Sharovan