देख तुम्हारी प्यारी छवि को,
बैचेन हो उठा है ये चितवन।
जाने कितने फूलों के साथ,
खिल उठा है अब ये उपवन।।
मीठी मधुर तुम्हारी मुस्कान से,
धड़क रहा जोरों से ये मन।
क्या मेरी भावनाओं को समझोगी,
विचार आ रहा ये अंतर्मन।।
बड़े बड़े ज्ञानी प्रेम में बंध गए,
जब चले एक स्त्री के नैनन।
बच नहीं पाया कोई भी इससे,
रूप ,श्रृंगार से जब निकले तपन।।
हम तो एक साधारण इंसान है,
बचकर जाएं कैसे इस यौवन।
तुमने जो मेरा प्रेम न स्वीकारा,
तो भटकते रहेंगे हम इस जनम।।
प्रेम में कोई भी छल नहीं देना,
ये कहता हूं मैं हर जन जन।
सहर्ष स्वीकार कर लो तुम,
मेरा ये विनम्र प्रणय निवेदन।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री