रोम रोम की आहटो का यही सवाल ये ,
ये जीवन है या कोई बवाल है
चाहें जितना भी लड़ ले ,
हर जंग के बाद दूसरी जंग तैयार हैं।
रोक कर खुद को कब तक हारे बैठेंगे,
जीवन की इस नैया में कब तक किसी और के सहारे बैठेंगे ,
अगर इस तूफानी समंदर से पार होना है तो ,
अब खुदकी आवाज को पहचान ना होगा ,
वरना हम तो कब के अपने हौसलों को मारे बैठे थे।
-Hiral Zala