😔कवि का दर्द😔
अपने मन के उदगारों को,
शब्दों में पिरोना चाहती हूं।
अच्छे और बुरे अनुभवों को,
सांझा करना मैं चाहती हूं।।
क्या इस दुनियां में केवल,
पैसा ही सब कुछ होता है।
एक कवि की लेखनी का,
क्या कोई मोल नहीं होता है।।
समाज,राष्ट्र,धर्म,जीवन पर,
लिखना क्या कोई अधर्म बात है।
एक स्त्री के मनोभावों को पिरोना,
ये भी कोई शर्म की बात है।।
अपनी लेखनी को निखारने के लिए,
जब भी भावों में डूब जाते है।
अपने ही लोग सबसे पहले,
चरित्र पर उंगली उठाते हैं।।
कवि और शायर बनने के लिए,
भाव को मन में जगाना पड़ता है।
डूबकर पूरी तरह कल्पनाओं में,
रस अपने अंदर लाना पड़ता है।।
अपनों की नजर में कवि का,
कोई भी मोल नहीं होता है।
क्योंकि उनके लिए तो सिर्फ,
पैसा ही अनमोल होता है।।
नहीं है अगर कोई विख्यात कवि,
क्या उनको पढ़ना स्वीकार नहीं।
गुमशुदा जीवन जी रहे है जो लोग,
क्या उनको मान पाने का अधिकार नहीं।।
जो भी देखता बस यही पूछता,
क्या करते हो तुम अपने जीवन में।
हम भी हंसकर कह देते हैं,
एक शायर,कवि हूं जन जन में।।
मेरा इतना बोलने पर ही,
सवाल यही सब लोग पूछते हैं।
कितना कमा लेती हो तुम,
ये प्रश्न करने से नहीं चूकते हैं।।
क्या जीवन में पैसा ही,
सब कुछ मायने रखता है।
नाम और शौहरत का,
कोई नहीं मोल समझता है।।
हूं छोटी सी एक गुमनाम कवि,
पर मैं भी मान सम्मान चाहती हूं।
पैसा मिले या न मिले हमें,
पर इज्जत कमाना चाहती हूं।।
एक कवि के दिल के दर्द को,
दूसरा कवि ही समझ सकता है।
जब कहते है लोग कितने कमाएं,
उस पीड़ा को बस वही समझ सकता है।।
सबसे बस इतना ही मेरा कहना,
कवि नहीं हो,उपहास मत उड़ाओ।
अगर तुम में इतना ही दम है तो,
कुछ तो आप भी लिखकर बताओ।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री