मैं सब जानता हूँ.............................
मैं टूटना भी जानता हूँ,
मैं बिखरना भी जानता हूँ,
मैं लड़ना भी जानता हूँ,
मैं ठहरना भी जानता हूँ,
हूँ तो इंसान ही मैं ,
मैं बदलना भी जानता हूँ...........................
मैं इंतज़ार हूँ किसी के इंतज़ार का,
मैं ऐतबार हूँँ किसी के टूटे ख्वाब का,
मैं ही तो हूँ जो हर बार मरते हुए सपने में,
जान फूंक देता हूँ,
मैं इंसान सब जानने के बावजूद ताउम्र वहम में जी लेता हूूँ..........................
पत्तों की तरह गिरता हूँ,
मैं चोट खा कर भी चलने की कोशिश करता हूँ,
अपनी बुराई करने वाली हर ज़ुबान से वाकिफ हूँ मैं,
कितना कुछ जानकर भी खामोश रहता हूँ मैं,
हूँ तो आम सा इंसान ही मैं,
अहंकार में खुद को खुदा समझ बैठा हूँ मैं.......................
स्वरचित
राशी शर्मा