कोरी चादर.......................................
काश के मैं सुंदर कोरी चादर होती,
ऊपर से हूँ जैसी - वैसी ही भीतर भी होती,
देखते सब दूर से मैं भी खुद को आईने में देखती रहती,
वो ओढ़नी एक दुआ होती,
जिसे सारी दुनिया छूने से ड़रती............................................
वो बेदाग चादर मेरा साया होती,
साथ - साथ चलती और मुझे खुद में छुपा लेती,
कोई और ओढ़े तो कमाल,
और जब मैं ओढ़ती तो मुझे नायाब कर देती,
वो कोरी चादर मुझे और संवार देती.............................................
किरदार कोरा चादर कोरी,
सुनने में संत और फकीर जैसा लगता है,
उससे पूछो जिसने कभी किसी का दिल ना दुखाया,
वो दिल लगाने से कितना ड़रता है,
खुश हूँ कि मेरा दामन साफ है,
ना मन मैला, ना सोच मैली,
ऐ भी अनोखा एहसास है..................................................
स्वरचित
राशी शर्मा