बटोर रहा हूँ...................................
अब समय खर्च नहीं करता दफ्तर के काम में,
ना परवाह करता हूँ कि दुनिया क्या कहें,
कान है मगर अब काम नहीं करते,
मेरी ही सुनते है किसी और की बात पर कान नहीं धरते.............................
खबर पक्की है कि वो दौलत और,
शोहरत के लिए दरवाज़े नहीं खोलता,
वो समय नहीं देता साथ ले जाने नहीं देता,
समझ गया हूँ कि उसे तो सिर्फ नेकी चाहिए,
मेरे शरीर नहीं बल्की मेरी की हुई दुआ चाहिए....................
मेरी उम्र और कद की बात ना पूछो,
जब समझ गया हूँ सार तो मेरी औकात ना पूछों,
समझ लो कि तुम सबसे बड़ा ही हूँ मैं,
तुम समटते रहे खज़ाना ताउम्र,
और मैं उसी खज़ाने को ठोकर मार,
इबादत करने में लग गया हूँ.......................
स्वरचित
राशी शर्मा