वास्ता दरारों से...........................
गलती मेरी है ऐ सब कहते है,
चुप्पी को मेरी गुनाह कहते है,
बोलने पर सब आँख दिखाते है,
ऐ करूँ या फिर वो हर वक्त मुझे समझाते है,
मेरे हर कदम पर शक करते है,
पता नहीं क्यों मुझे देवी कहते है.................................
दरारें ही देखी जब भी किसी ने देखा,
खूबी को हमेशा ही अनदेखा किया,
आदत नहीं है मेरी कि हर दफा खुद की सफाई पेश करूँ,
जब बना दिया है मुजरिम तो भला मैं क्यों खुद से लडू,
आज़ाद तो हूँ मगर आज़ाद नहीं,
मैं हूँ सबके साथ मेरे साथ कोई नहीं................................
हर दफा किसी बेजान मूर्ति की तरह देखा जाता है,
तभी तो टूट जाने पर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है,
आँखों को पढ़ने वाले तो अनपढ़ निकले,
हम फिर भी बने रहे बेवकूफ,
कहीं वो खुद को कमतर ना समझ लें,
हम तो जैसे थे वैसे ही रहें,
बदला तो कोई और है लेकिन उसे भी,
हम ही बदले हुए लगे....................................
स्वरचित
राशी शर्मा