मंदिर बना दिया........................
खुद की ज़रूरत के हिसाब से उसके पास जाते है,
कुछ मांगना हो तभी सिर झुकाते है,
चढ़ावा चढ़ाते है दिल खोल कर हम,
वो गर भूल भी जाएं तो उस पल को याद कराते है................................
ऐसी ही है मंदिर की कहानी, ऐसा ही हो गई है दुनिया हमारी,
अपनी आरज़ू की खातिर ना जाने कैसे - कैसो से दोस्ती बढ़ा लेते है,
तड़पते नहीं है खुदा के आगे,
लेकिन उसके बंदों के आगे तड़प जाया करते है..................................
पूरी दुनिया को मंदिर ही बना दिया,
जो मदद कर दें उसे भगवान का दर्जा दे दिया,
अब वो भीख दे या खैरात इंसान को सब मंज़ूर है,
चंद रूपयों के खातिर हमनें खुद की इज़्जत का सोदा कर दिया..............................
स्वरचित
राशी शर्मा