#हिन्दी कविता
शनैः-शनैः, कर चली अलविदा आसमान को
सावन की बूंदे ,
बरस चली धरती को....
अब हम मिले ना मिले ,
कहे तैरते हुए बादलों को
जो अब के बिछड़े ,
अब ना मिलेंगे किसी मोड़ पे
कहे छूटते हुए दामन को
खुशबू देती डाल को ,
अलविदा कर चली
माली के प्यार को
फूल जो गिरे पतझड़ की कमान से,
कहे अब ना गले मिल पाएंगे अपने प्यार को...
युगो से कहे नारी अपने बाबुल को
अब ना मिल पाएंगे जो चले
पी के द्वार को...
Deepti