समीक्षा -जोग लिखी (कहानी संग्रह)
लेखिका - #सुनीता_बिश्नोलिया
साहित्य अकादमी, उदयपुर के आर्थिक सहयोग से बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित कहानी-संग्रह 'जोग लिखी' में लेखिका सुनीता बिश्नोलिया ने विविध विषय संयोजित किए हैं।कहीं दिव्यांग और मानसिक रुप से बीमार लड़की की कहानी है तो कहीं नई पीढ़ी को संस्कारों की शिक्षा देने वाली तारा की कहानी है। कहानी ' वह अबोली' में लेखिका समाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को विशेषकर नारी की मूक व बेबस स्थिति का बेबाक चित्रण करती है।
कहानियों के कथोपकथन कथानक के अनुकूल रोचक और जीवंत है।' नफरत का चाबुक : प्रेम की पोशाक' मनोवैज्ञानिक धरातल तथा रिश्तों की कहानी है।
कहानी' चीकू का बीज' में बहुत प्रतीकात्मक और गुणात्मक शब्द लिया गया है। शीर्षक को सजाने हेतु लेखिका की कलम का कैमरा मानवीय संवेदनाओं की गहरे तक अनुभूतियों को शब्द सुधा में डुबो देता है।
' खिलखिला उठे जिंदगी' पर्यावरण संरक्षण पर शब्द स्वरों की इतनी सुंदर सरगम, साधना और सुंदर परिकल्पना इस कहानी का नवीन रूपक में ढाल देती है।
कहानी 'जोग लिखी' लेखिका में भाग्यवाद के भ्रम से निकालकर कर्म की और प्रेम महत्ता पर बल देती है।
पात्रऔर चरित्र-चित्रण - हर परिवेश की कहानी के अनुरूप पात्रों की सृष्टि की गई है। 'इत्ती सी हँसी इत्ती सी खुशी' की आंटी, बाजी और सर्वजीत की भाषाओं में बोलचाल सरल एवं सहज पंजाबी भाषा में है।
भाषा और शैली - इस कहानी संग्रह की भाषा और शैली का स्वरूप कहीं भी अनगढ़ नहीं कहा जा सकता। प्रांतीय और आंचलिक भाषा का प्रयोग कहानियों को प्रभावी बनाता है।
देशकाल और वातावरण - प्रत्येक कहानी का वातावरण कथानक के अनुरूप है 'चूल्हा ठंडा नहीं होगा' इसका अनुपम उदाहरण कहा जा सकता है। कथानक कलेवर अद्वितीय है लेखिका ने शिल्प चातुर्य के नए मुकाम खड़े किए हैं। वातावरण और कथानक के समय का संतुलन उद्देश्य की दृष्टि से हर कहानी सकारात्मक दृष्टिकोण से पूर्ण है तथा हर कहानी मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की तरह आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी कही सकती है। जैसे उनकी कहानियों में मनुष्य की कमजोरियों पर विजय या जीत दिखाई जाती है उसी प्रकार लेखिका की कहानियाँ भी जीवन के उबड़- खाबड़ विभिन्न रंगों और रसों के साथ-साथ रचाती-बसाती साहित्य सागर में अपनी छाप छोड़ती हैं।
इस कहानी संग्रह के इस सुंदर सृजन के लिए लेखिका को आकाशभर शुभकामनाएं हैं और उम्मीद कायम है कि लेखिका की कलम समाज उपयोगी मानवोपयोगी साहित्य सृजन श्रृंखला को आगे बढ़ाती रहेगी।
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समीक्षक - शकुंतला शर्मा
शिक्षाविद् साहित्यकार