स्त्री यु तो तू देवी है, शक्ति है,ममतामयी है,
तू जीवन स्वरूपा, प्राणरूपा,सृष्टि की अनुपम कृति है।
तू दया की मूर्ति है,पर फिर भी हर -प्रहर छली है।
आज अपना वजूद खोज रही तू,
पर अपने लिए मौन- नि:शब्द रही है।
सबका साथ निभाने वाली,
पर इस सफर में अकेली खड़ी है।
रिश्तो के बनने- बिखरने में, पर तू ही क्यों चुनी है।
हर पल मर्यादा में रहने की, यह बात तुझे ही कही है।
इन सब से अनजान तू, शायद कुछ-कुछ समझ रही है।
दो परिवार की नैया पर सवार तु, सब कुछ सह रही है।
रिश्तों के इस मोह- जाल में,अपना सर्वस्व झोंक रही है। -Nidhi