मेरे शहर की हवा बदल रही है ।
सांसे दम घोट रही है।
हरपल जीना दुश्वार कर रही है।
गगनचुंबी इमारतें हरे भरे खेतों की,
तस्वीर बदल रही है ।
कुछ पाने की आस,
सब कुछ यहां छीन रही है ।
परिंदों का रुख मोड़ रही है।
अमृतमयी नदियां
जहर बन रही है।
मेरे शहर की रौनक
प्रकृति से खिलवाड़ कर रही है।
मेरे शहर का ही नहीं
सम्पूर्ण प्रकृति का नाश कर रही है।