मैं पुरानी हूँ.................................
मैं पुरानी हूँ,
अब नई होना चाहती हूँ,
नए एहसासों की ज़िम्मेदारी संभालना चाहती हूँ,
छुपाना चाहती हूँ अनगिनत राज़ खुद में,
किसी को पढ़ना, किसी को समझना चाहती हूँ,
मैं फिर से लोगों का होना चाहती हूँ............................
मैं पुरानी हूँ,
फिर भी आज के हिसाब से ढ़लना जानती हूँ,
स्याही के ज़माने से निकलकर कलम की होना जानती हूँ,
पहले लोग जज़्बात और ईश्वर का नाम लिखते थे,
अब बदल चुके है इस पर लिखने वाले,
अब शब्दों के साथ चित्र भी चस्पा करते है,
वो बदल गए है पर मैं नहीं बदला,
मैं पहले भी खामोश था और अब भी खामोश ही रहा.........................
कागज़ की गुणवत्ता में भी सुधार आया है,
पहले मैं हल्के दबे रंग का होता था,
अब मुझ पर भी सफेदी का खुमार छाया है,
पहले मेरी कीमत लिखने वालों से होती थी,
अब तो मैं बाज़ारों में रखे - रखे ही महंगा हो गया,
रकम लिखने वालों की अब घट गई,
देखों तो ज़रा द्रश्य अनोखा हो गया................................
स्वरचित
राशी शर्मा