आज के परिवेश में धीरे धीरे एक बीमारी ने अपने पाँव पसार रखे है और वो है एकाकीपन
हर व्यक्ति भीड़ में होकर भी अकेला होता है ,,
अपने हृदय में एक तूफ़ाँ दबाये होता है
अजब सी एक कसक को अक्सर रोकने में स्वयम को असमर्थ पाता है ,,
निरीह निगाहों से वो एक दिल तलाशता है जिसमें अभी भी संवेदनाएँ जीवित हो,,
जो उसे केवल सुन नहीं समझ भी सकता हो,,कई बार ये तलाश जीवन पर्यंत एक असफलता के रूप में विद्यमान रहती है,,
कुछ लोग अपने दर्द और पीड़ा को छुपाने की कला वक़्त के साथ सीख जाते है,,
उनकी उन्मुक्त हँसी के पीछे छुपे हुए आँसुओं को कोई आसानी से देख नहीं सकता ऐसे लोग खुद को तो नहीं संभाल पाते, परंतु दूसरों को भावनात्मक रूप से बिखरने से बचाने का अथक प्रयास करते है,,
और अपने इस प्रयास में अक्सर सफल भी हो जाते है क्युंकी उन्हें पीड़ा की गहराई और उसकी अंतता का पूर्ण आभास होता है।।
कई बार सामने वाला उन पर भावनात्मक रूप से निर्भर हो जाता है,,वो अनजाने में ये भी नहीं जानता कि जिस दीवार का वो सहारा ले रहा है,,
वो तो पहले से ही जर्जर हो चुकी है उनसे दूरी या अलगाव उन्हें अनपेक्षित होता है।।
अजब सा होता है ये सब l फिर भी कुछ पलों की खुशी पीड़ाओं को भुलाकर जिंदगी को जीने का एक मार्ग दिखा ही देती है ।।
जीवन तनहा है और तनहा ही रहेगा इसे आज तक कोई संतुष्ट नहीं कर पाया।।
SKM..... .....।।
-किरन झा मिश्री