ये हताशा…
ये बेबसी…
ये लाचारी किसलिए…?
ये तेरा हार मान लेना किसलिए…?
क्या यही थी तेरी मंशा…?
क्या यही है तेरी मंज़िल…?
यूं आस छोड़कर बैठ जाना किसलिए…?
याद कर अपनी मंजिल को तू…
उठ और आगे बढ़…
लड़ कर हर निराशा से तू…!
क्योंकि यह निराशा भी जरूरी है सांसों-सी…
तेरी मंजिल के सफर को जीवित रखने के लिए…!
-Ankita Gupta