कुछ खामिया मुझमे भी थी कुछ उनमे भी , ये सफर था एक दौर का जो खत्म हो गया एक सपने कि तरह ,
गिर गए वो ख्वाब जो कभी मिलके देखे थे हमने एक सूखे पत्ते कि तरह ,
चुप भी रहती हूँ हस भी लेती हूँ किसी अनजान कि तरह ,
कट रही है ज़िंदगी अपने हि अंदाज से बह रहा है ये सैलाब किसी समुन्दर कि तरह ,
जब ना मिलने कि उम्मीद थी तो क्यूँ मिल गए तुम इन हजारो कि भीड़ मे किसी हादसे कि तरह ,
यू तो चलता रहता ये सिलसिला मिलने बिछडने का लेकिन वो दिवार जो बंध गई हमारे बीच किसी साये कि तरह.......
-Piya