आज मैं अपने मन के मुताबिक़ जीती हूँ ये ज़िंदगी
मैं हूँ उन्मुक्त पंछी और ख़ुशनुमा है तभी ये ज़िंदगी
कुछ लोग कहते हैं, क्या करें ? मजबूर हैं हम
झुको न कभी क्योंकि मजबूर नहीं मज़बूत हैं हम,
अपनी मजबूरी को ही ताक़त बना लेती हूँ
अपनी कमी को खुद में समाहित कर लेती हूँ
नहीं कहती कभी कि राहों में बिछे शूल हैं
काँटे करते हैं हिफ़ाज़त तभी तो खिलते फूल हैं