मैं अखबार हूँ...............................
दशकों पुराना मेरा इतिहास है,
कागज़ के बाद में जन्मा इस पर मुझे नाज़ है,
सब छपता है मुझमें तभी तो हर कोई मुझे पढ़ता है,
भाषाओं का प्रतिबंध नहीं है मुझ पे,
जो जैसे चाहे मुझे जान सकता है...............................
सफेद कागज़ पर काली स्याही से लिखा गया,
तस्वीरों को भी आम रंग में ढ़ाला गया,
ऐ बात पुरानी है मगर अब भी कायम है,
फर्क सिर्फ इतना है कि पहले में सादा था,
अब मुझ पर रंगीन दिखने का भी भार है...........................
मेरे बगैर सुबह की शुरूआत नहीं होती,
चाय भी फिकी लगती है,
उसमें मेरी वाली कोई बात नहीं होती,
छपने से लेकर पढ़े जाने तक का सफर खास होता है,
मुझसे पूछो कितने लोगों के घरों में जाने का मुझे,
सौभाग्य प्राप्त होता है.............................
कोई भी खबर - बेखबर नहीं है मुझसे,
हर शहर की नज़र है मुझ पे,
तभी तो आए दिन कोई ना कोई मेरी सुर्खियों में रहता है,
जब भी छपता है मुझ पर,
कोई ना कोई कारनामा ज़रूर होता है.......................
आरज़ू है लोगों की मुझ पर दिखने की,
अपनी कहानी मेरी ज़ुबानी सुनने की,
उन्हें क्या पता जो नज़रे मेरा इंतज़ार बैचेनी से करती है,
मुझे पढ़ने के बाद मेरी औकात एक रद्दी की होती है...................
स्वरचित
राशी शर्मा