कदमों की छाप............................
फितरतन नहीं घूमता, मैं यूँ नहीं फारिक घूमता,
कुछ खो गया है ज़मीन पर मेरा,
इसलिए ही मैं आसमान से सवाल करता,
शायद वो कुछ बोल दें, अपना मुँह खोल दें,
मेरे कदमों की छाप से कहीं से तो मुझे ढूढ़ ले....................
मिट्टी की सौंधी खूशबू मुझे जंगल तक ले आई,
चलता गया मैं मेरे कदमों ने कहा ही नहीं कि,
वापसी की है घड़ी आई,
ना थकान हुई, ना सांसों को उलझन हुई,
ना दिमाग भटका और ना ही,
ख्यालों को ख्यालों की ज़रूरत हुई,
कदमों ने कहां कुछ मील और चल मेरे साथ,
ज़रा छाप तो छोड़ तू मेरे साथ................................
तजुर्बे ने कब कहा कि बड़ा हो जा तब मैं आऊँगा,
उसने तो कहा जी तो ले मैं खुद ब खुद तुझमे बस जाऊँगा,
यकीन तो आता है मगर ऐतबार नहीं होता,
क्या करें हारे हुए को जीत का एहसास ही नहीं होता,
समान हो जाते है हर जज़्बात धीरे - धीरे,
फिर फर्क भी नहीं पड़ता कि हमने,
कदमों के छाप कहां तक है छोड़े...........................
स्वरचित
राशी शर्मा