हर पल जीने की ख्वाईश को वह कभी कभी
मुझे मौत के हवाले कर देती
प्रतीत होता मानो हर रिश्ते नाते से
मुझे बस वह कांटो से चुभन देती
गलतियां मेरी हजारों बेशक, बेहिसाब
मुझे सुधरने का एक मौका तक न देती
जितनी भी करु कोशिश, हिस्से मेरे हार
मुझे अवगुण की ओर ले चल, मुड़ने न देती
आखिर इतनी परेशानी ? खुद ही का वजूद भूले
मुझे अपनी ही कोई खबर रखने न देती
हा चलो ! आशाओं का सागर,अविश्वास के पहाड़ों से रुके
मुझे यह चिंताए आंसू बहने तक न देती
उर्मि