गुमशुदा डायरी...........................
मेरी डायरी मुझसे ही खो गई,
पन्नों की महक उसमें ही दफन हो गई,
पता नहीं किस हाथ लगी, किसके साथ चली,
खामोश है वो बहुत ना जाने किससे क्या बात हुई.....................
सोने से पहले और जगने के बाद,
दीदार होता था उसका अनगिनत बार,
जब नज़र पड़ती थी वो अपने पास बुलाती थी,
ईशारों से मुझे मेरी ही लिखी बातों को खुद को सुनवाती थी,
ना जाने कहाँ चली गई मुझसे नाराज़ हो कर,
लम्बी रात संग मुझे अकेला छोड़ गई,
खुद गायब हो कर.............................
कभी तंज़ सहे, कभी उसने दर्द सहे,
हमने जो कुछ लिखा उसने हर शब्द सहे,
दिनों - दिनों खुद की बारी का इंतज़ार किया उसने,
मेरे साली समय का भी ख्याल किया उसने,
किसी को मिले तो लौटा देना,
गुमशुदा ड़ायरी को कहीं पढ़ ना लेना..............................
स्वरचित
राशी शर्मा