ये काली रात, और ये अकेलेपन कि काली गहराइयां ...
अफ़सोस होता है कि तुम हमें क्यू मिले...
तुम अब दर्द हो, हमदर्द नहीं,
रश्क -ए-शिकवा करे भी तो किससे??
चाहा भी तो तुम्हें हमने था।
गैरों से क्या उम्मीद, जब अपनो ने ही कसर न छोड़ी..
अक्सर टूट जाया करती हैं,
मैं भी और मेरी उम्मीदें भी..
मैंने कब कहा, मिल जाओ तुम मुझे
गैर न हो जाओ, बस फिक्र इतनी सी है...
चाहत नहीं हैं किसी को पाने की,
अब बस ख़ुद से मिलने का मन हैं...
Aye जिंदगी! ज़रा गले लगा लें...
Aye जिंदगी! ज़रा गले लगा लें न....
@panchhi