ज़िंदगी मिलती है सिर्फ़ एक बार
पर कटती है किश्तों में बार - बार
जन्म लेते ही खुल जाता है खाता
कोई सुख तो कोई दुःख है पाता
सुकून पाने को आदमी कालचक्र - सा भागता
ज़िंदगी जीने को ऐ ज़िंदगी ! तेरा ही मुँह ताकता
कोई पेट भरने को दौड़ा तो दूजा पेट कम करने को दौड़ लगाता
पेट की ख़ातिर दौड़ा सरपट , अंत समय में बस दो गज ही है पाता
उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’