Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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हिचकिचाहट कैसी, बोखलाहट कैसी ?
न मैं इंग्लिश मेड़म हूं, न मैं विदेशी हुकूमत हूं !
बस में हिंद की कोमल-सरल स्वदेशी हिंदी भाषा हूं
संपूर्ण मुक्त अभिव्यक्ति, सबकी जुबां की प्यारी..
खट्टी-मीठी मिश्री बनकर, रिश्तों में घुलती
बच्चे, युवा, बूढ़े सबको गले लगाती ।

भाषा के बिना तुम जड़ व्यक्ति ,
भाषा से तुम ज्ञानी पंडित
समझ लें, पढ़ लें, लिख लें ,
जन-जन को जोड़ती, मन-मन को जानती
गांव-गांव में मिलती, शहर-शहर में पढ़ती ।

हृदय का भाव बोलती, स्नेह का गांठ खोलती ,
चेहरे पे मुस्कुराती, पुस्तक में गुनगुनाती
अक्सर कवियों, लेखकों को खूब लुभाती ,
उत्साह का द्वार खटखटाती, सुख-दुख का भाव बांटती
रूप-रंग-ढंग-चाल में ढलती, सबके साथ चलती ।

हां.. मैं, भारत की अनमोल धरोहर हूं
देवनागरी लिपि से निकली हुई ,
विद्या की नगरी से....
शिक्षा का गुणगान गाती हुई ,
सदैव एकता की पाठ पढ़ाती
इंसानियत की मिशाल सिखाती ,
हिंदी भाषा मेरा अस्तित्व, मेरी पहचान ।

सहज-सरलता के साथ
करती हूं नमस्ते समस्त भारतीयों को ,
नम्र निवेदन के साथ...,
मुझे हक़ से लिखें, दिल से पढ़े
यही मेरा सम्मान, यही मेरा गौरव ।।

-© शेखर खराड़ी
तिथि- १४/९/२०२२ , सितंबर

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111832035
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