बहती नदी में कागज की नाव
चले है शहर सब छोड़कर के गांव।
गलती है कागज डूब रही नाव।
पैरो तले जमीं नही,ना सिर पे छांव।
हड्डियों में जान नही, उड़ रही है राख बन।
चिथड़े है बिखरे, गीदड़ो के गांव।
जानवर से बदतर इंसान क्यों हुआ।
मार करके खाना आसान क्यों हुआ।
नोचता है खींचता वो पतल्लो में पांव।
बहती नदी में कागज़ की नाव।
Anand Tripathi