प्रेम उससे करो जो कभी न बदले भाव, वचन ,कर्म से
जो अपकी सुन्दर अवस्था (युवावस्था) , जीर्णावस्था (वृद्धा वस्था , मृतावस्था के पश्चात भी प्रेम करता रहे , उसे आपकी सुगन्ध , दुर्गन्ध से भी समान प्रेम हो | ऐसा प्रेम केवल प्रेमी परमात्मा ही कर सकते हैं | यह प्रेम उनका प्रसाद है जो उपलब्ध सबके लिए समान है मगर ग्रहण उसे कोई ही कर पाता है |