काश मैं भी................................
हर रंग, हर रूप में ढ़ल गया होता,
सब से छुप जाता, जो मैं पानी में मिल गया होता,
सबकी बुराई और उनकी अच्छाई से मैं रूबरू हो पाता,
सुन लेता सबकी कहानी मैं पर किसी को ना बताता,
काश कि मैं पानी होता.............................
ना कोई ऐब गिनाता मेरे, ना ही कोई मुझे कमतर आंकता,
सूख जाता जब किसी का गला तो,
वो मुझे अपने कण्ठ से नीचे उतारता,
मैं भी बेपरवाह हो कभी इधर तो कभी उधर जाता,
हर सागर से मिलता मैं और हर नदी में मेरा कुछ अंश सिमट जाता,
काश कि मैं पानी होता.........................
मेरी भी अपनी एक हैसियत होती,
हर मंदिर और घर में गंगाजल नाम से मेरी प्रसिद्धि होती,
मेरी परवाह मैं डूबा इंसान मुझे बचाने की कोशिश करता,
जब सैलाब बन आता मैं तो मुझे शांत करने के लिए,
ईश्वर की उपासना करता,
काश कि मैं पानी होता.....................................
स्वरचित
राशी शर्मा