किताब ए ज़िन्दगी............................
डूबा देती है खुद में, भंवर में फंसा देती है,
हाथ थामने नहीं आती ऐ, तजुर्बें से सीखना सिखाती है ऐ,
दिलकश है इतनी कि रोज़ाना खुद से मोहब्बत करवाती है,
आफत तो तब आती है जब ऐ सब कुछ कर पीछे छोड़ जाती है.................................
कभी सहेली है तो कभी पहली है,
पलटते जाओं पन्ने की तरह कम होती जाएगी,
कभी तो लगता है समझ में आ गई,
तो कभी उलझा देती है खुद के सवालों में,
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी कब अपनाएगी तू हमें...............................
ज़िन्दगी में कुछ ही पल में कुछ भी हो सकता है,
जो अक्षर गहरे छपे थे उस पर सियाही का गहरा रंग पड़ सकता है,
सिखा - सिखा कर थका देती है, उम्र गुज़र जाती है देखते - देखते,
किताब अधूरी रह जाती है ज़िन्दगी की और पीछे छोड़ जाती है राज़ कई................................
स्वरचित
राशी शर्मा