*दोहा सृजन हेतु शब्द--*
*झरोखा, क्षीर, छीर, तीर, बिजना, मौका*
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1 झरोखा
स्वयं झरोखा झाँकिए, अन्तर्मन में आप।
दूषित भाव नकारिए, दूर रहें संताप।।
2 क्षीर (दूध)
नीर-क्षीर को भेद कर, हटा अँधेरी रात ।
मानस में वह हंस ही, रखे विवेकी बात।।
2 छीर (वस्त्र का छोर)
भूख गरीबी में पिसा, किसने समझी पीर।
अश्रु आँख से नित्य बहें, भींग चुके सब छीर।।
3 तीर
कर्कश वाणी तीर सम, उतरे दिल के पार।
मीठी वाणी बन शहद, सदा करे उपचार।।
4 बिजना
बिजना डोले हाथ में, तपी दुपहरी धूप।
चाहत निर्मल नीर की,अँगना में हो कूप।।
5 मौका
मौका कभी न चूकिए, हिस्से में शुभ-काम।
ईश्वर का वरदान यह, जग में होता नाम।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "