मैं मौसम अलबेला.......................
जब उसने ब्रह्माण बनाया,
प्रक्रति के साथ उसने भी मुझे ज़मीन पर भिजवाया,
मुझ बिन कैसे संभंव होगा ऐ जीवन,
यह कह कर मुझे इसका हिस्सा बनाया.....................
मेरे होने से संयम बरकरार है,
खुश है ज़माना व्यकत्तिव भी खुशमिज़ाज है,
सोचों ज़रा सिर्फ एक ही मौसम होगा तो क्या होगा,
साल तो बदलेगा मगर इंसानी रवैया पुराना होगा.....................
पहली बारिश का सबको इंतज़ार रहता है,
यूँ ही थोड़ी काले बादल को देख मन खुश होता है.
कागज़ की किश्ती बना कुदरती संकीर्ण नदी में उतारी जाती है,
चाय और पकौड़ो संग बसंत ऋतु मनाई जाती है................................
पतझड़ के मौसम में पेड़ खाली और ज़मीन भरी होती है,
हरियाली के बीच सूखे पत्ते की रंगत कुछ और ही होती है,
पुरानी बात है कि पतझड़ में पेड़ बर्बाद दिखने लगता है,
कैमरे का ज़माना है भाई जिस पर हर मैसम खुद की,
आकर्षक कहानी कहता है........................
स्वरचित
राशी शर्मा