पलायन.......................
सदियों से जीवन का हिस्सा है पलायन,
सुना है,
ज़िन्दगी को सार्थक करने का किस्सा है पलायन,
क्या होता है जब ऐ पलायन खुद का फैसला ना हो,
कुछ ऐसा जिसमें सूरज छुपने और दिन निकलने का,
एहसास ज़िन्दा ही ना हो..........................
ऐ वो पलायन नहीं जो खुद की मर्ज़ी का हो,
ऐ वो घड़ी है जिसमें वक्त का पता ही ना हो,
कब ऐ पैगाम मिल जाए कि घर जल्दी से खाली करों,
इंसान समझ ही ना पाए कि क्या झोले में डालूं,
और कौन सी चीज़ निकालकर वज़न हल्का करूं...........................
बेहद मुश्किल है चौखट पार करना भी,
उस ज़मीन और दरों - दीवार से बिछड़ना भी,
कौन जाने कब मुसाफिर की वापसी होगी,
पुराने घर के बगीचें में फिर,
शाम की चाय होगी...................................
धन्यवाद, धन्यवाद बहुत - बहुत धन्यवाद,
उसका जिसने कभी हमें इस पलायन से रूबरू होने ना दिया,
अपनी मिट्टी से जोड़े रखा गैर होने ना दिया,
इंसान टूट जाता है ज़बरदस्ती के आवागमन से,
उम्मीदें टूट जाती है इंतज़ार के कहर से...................................
स्वरचित
राशी शर्मा