मैं नास्तिकता की भी बात करती हूं और आस्था की भी , यह मेरा निजी मत है इसलिए मैं परंपराओं को मानती भी हूं पर उन्ही परंपराओं में छिपी कुरीतियों का विरोध भी करती हूं यानि मेरे शब्द विरोधाभासी हैं और व्यक्तिगत तौर पर मेरे विचार मेरे अपने हैं आप विरोध करें या समर्थन यह आपका निजी मत होगा ।
जब मैं नारीवाद , जातिवाद , आडंबरों जैसे पहलुओं पर विचार करती हूं तो बिल्कुल धर्म और कट्टरता को नकारूंगी पर जब भक्ति की बात करती हूं तो पुरुषवादी ग्रंथो में लिखे अतिश्योक्तिपूर्ण हरि महिमा का भी भरपूर भावों के साथ वंदन करती हूं लेकिन ......... पुरुषवादी धर्म ग्रंथो में महिलाओं के लिए टिप्पणी का हमेशा विरोध करती रहूंगी।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं