वाणी की कला.....................
बात बनाना सबको आता है,
अपनी बातों से शाम को सुबह कर देना सबको आता है,
कोई घूमाता है बातों को बातों में,
तो कोई एक अल्फाज़ में सब कह जाता है,
सबकी खूबी जुदा- जुदा है,
लेकिन वाणी का इस्तेमाल सभी ने अपने ढ़ंग से किया है......................
धीमी आवाज़ सबको नज़दीक ले आती है,
ज्ञान का सूचक है ऐ तभी तो संतों को पसंद आती है,
ऊँचे स्वर से भीड़ जुटाई जाती है,
शोर - गुल के बीच बात तो नहीं बनती,
मगर बहस छिड़ जाती है,
मकसद चाहे कोई भी हो वाणी का महत्व दर्शाती है,
नहीं तो बोलने कि क्या ज़रूरत लिखकर भी बात समझाई जा सकती है......................
कोई चीखता है तो बुरा लगता है,
गुस्से का पारा भी सातवें आसमान पर चढ़ा रहता है,
जब कोई वाणी में मिठास घोल कर हमसे बात करता है,
तो यकीन मानों एक पल के लिए नहीं बल्की कई दिनों तक,
उस वाणी का हमसे और हमारा उस शख्स से रिश्ता बना रहता है........................