“रेख्ता से”
उम्र गुजरेगी इम्तिहान में क्या ?
दाग हो देंगे मुझ को दान में क्या ?
मेरी हर बात बे- असर ही रही
नुक्स है कुछ मिरे बयान में क्या
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या
अपनी महरुमियां छुपाते है
हम गरिबो की आन-बान में क्या?
खुद को जाना जुदा जमाने से
आ गया था मिरे गुमान में क्या ?
ऍ मिरे सुब-ओ शाम-ऍ-दिल की शफक
तू बहानी है अब भी बान में क्या ?
बोलते कक्यूं नहीं मिरे हक में
आबले पड गऍ जबान में क्या
खामुशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मिरे गुमान में क्या
दिल की जाने है जिसे को ध्यान में क्या ?
.......... जौन ऍलिया