धुआं- धुआं जलता मैं .................
आसमान बेखबर है ज़मीन की खबरों से,
नम है आँखें उसकी तरफ देख के,
कोई फरियाद तो पहुँचा दे मददगारों तक हमारी,
क्या करें ज़मीनी लोग सुनते नहीं सिसकियां हमारी,
शायद आसमान ही सुन ले हमारी कहानी............................
कुछ दिनों से यहाँ कुछ बदला नहीं,
वक्त जैसे आगे बढ़ा ही नहीं,
बस साँसें चल रही हो यूँ ही खामखां,
हकीम भी बोला नव्ज़ तो चल रही है बराबर तुम्हारी........................
सब हमें छोड़कर जा रहे है,
कोई मर रहा है तो कई भाग रहे है,
नए मंज़र ने शहर पराया कर दिया,
ना मिट्टी बदली ना बदले हम,
वो जो आए उन्होनें वक्त ही बदल दिया.........................
स्वरचित
राशी शर्मा