"चाय की चर्चा"
चाय चाहे नुक्कड़ वाली हो या कुल्लहड़ वाली,
आम सी रंग की हो या हो कड़क वाली,
इसकी बात ही निराली है,
हर बात में हर विवाद में ये मिठास मिलाने वाली है,
चाहे काम हो या फुर्सत,
इसका हाथ में होना तो बनता है,
गहरी सोच और चाय की चुस्की दोनों का ताल - मेल एक दम सटीक बैठता है,
ना मूड़ देखता है ना मन देखता है,
ज़ुबान पर लगते ही अपने रंग में रंग देता है,
इंसान इसका आदी है,
तो मौसम भी इसका गुलाम है,
गूफ्तगू कायल है इसकी,
हर समां में इसका नाम है,
अपनी तारीफ सुनने को ये हर जगह पहुँच जाती है,
ढ़ूढ़ती है वो घर जहाँ से इसकी खूशबू आती है,
सुबह से शाम तक ये ना जाने कितने चक्कर लगाती है,
अनगिनत हाथों से हो कर गुज़रती है ये,
और ना जाने कितनों के लबों पर ठहर जाती है.