मैं अकेला...................
मैं अकेला इधर - उधर झांकता हूँ,
इस कोने से उस कोने तक यूँ ही चक्कर लगाता हूँ,
घड़ी की सूईयां भी चल - चल कर थक गई,
कहने लगी एक दिन में 24 घंण्टे होते है,
तेरे लिए क्या 48 कर दूँ................
ना नींद आती है ना करार आता है,
ऊपर से जब बिजली चमकती है तो,
मेरा दिल डूब जाता है,
कोई तो जा कर कहें उससे कि,
वो आराम से बात करें,
बैहरा नहीं हूँ मैं सब सुनाई देता है मुझे,
मैं अकेला क्या करूँ,
कब तक आसमानों से बातें करूँ,
कितने अर्से तक खिड़की पर खड़ा रहूँ,
थक चुके है वो भी मुझे देख - देख कर,
मैं कब तक अपने इस चेहरे की उनसे पहचान करूँ.