विषय - खामोश लफ्ज
दिनांक -01/08/2022
लफ्जों को खामोश करके,
हम दोनों ही चुप रहते थे।
पर आंखों ही आंखों में,
बहुत कुछ ही कह लेते थे।।
है उनके दिल में भी चाहत,
पर वो कभी नहीं बताते थे।
करते रहते थे परवाह हमारी,
पर प्रेम कभी नहीं जताते थे।।
उनकी इसी अदा पर तो,
दिल हमारा आ गया था।
धीरे धीरे मेरे दिल पर भी,
उनका नशा ही छा गया था।।
हम भी अपनी मीठी मुस्कान से,
उनको ही निहारा करते थे।
उनकी एक झलक पाने के लिए,
घंटो उनका इंतजार करते थे।।
बस खामोश होकर हम दोनों की,
जिंदगी यों ही चल रही थी।
न वो ही कुछ कहते थे हमसे,
और न ही मेरी बोली निकलती थी।।
पता है वह अपने फर्ज के आगे,
रिश्तों को भूल जाते थे।
देश को समर्पित है उनका जीवन,
यही बात वो बार बार समझाते थे।।
हमनें भी उनके फर्ज के आगे,
अपना सिर नतमस्तक किया था।
वो करें अब इस देश की सेवा,
उनके फैसले का सम्मान किया था।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री