42 साल पहले आज ही के दिन सुरों के सिरमौर, गायिकी के सबसे चमकते सितारे, हमारे प्यारे रफ़ी साहब हमेशा के लिए ओझल हो गए.....पर जब तक दुनियां में संगीत है उनकी चमक कभी फीकी नही होगी। वो युगों युगों तक यूँही चमकते रहेंगे और हमारे दिलों मे धड़कते रहेंगे।
हर सुख में, दुःख में, ग़म में, खुशी में हम रफ़ी साहब को साथ खड़ा पाते हैं। मुश्किल घड़ी में सहारा बनते हैं, दुविधा में हो तो रास्ता दिखाते हैं दर्द में हो तो ज़ख्मों का मरहम बनते हैं। वैसे तो हर मौके के गीतों का खज़ाना हैं रफ़ी साहब का, पर कुछ ऐसे गानों का ज़िक्र करते हैं जिन्हे सुनकर दिल को सुकून मिलता है।
इक दिन पड़ेगा जाना, क्या वक़्त, क्या ज़माना
कोई न साथ देगा, सब कुछ यहीं रहेगा
जाएंगे हम अकेले, ये ज़िंदगी के मेले
दुनियां में कम ना होंगे, अफ़सोस हम होंगे...
वो जुदा क्या हुए ज़िंदगी खो गई
शम्मा जलती रही रोशनी खो गई
बहुत कोशिशें कीं मगर दिल न बहला
कई साज़ छेड़े कई गीत गाए
वो जब याद आये बहुत याद आये...
उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे, मन रे तू काहे ना धीर धरे...
जो ठोकर ना खाए, नहीं जीत उसकी
जो गिर के सँभल जाए, है जीत उसकी
निशाँ मंज़िलों के ये पैरों के छाले
कहाँ जा रहा है, तू ऐ जाने वाले
अंधेरा है मन का दीया तो जला ले...
सुनके जो बहरे बन जाओगे
आप ही छलिया कह लाओगे
मेरी बात बने ना बने, हो जाओगे तुम बदनाम
चलते-चलते मेरे पग हारे, आई जीवन की शाम
कब लोगे ख़बर मोरी राम...
जीवन के सफ़र में हम जिनको
समझे थे हमारे साथी हैं
दो क़दम चले फिर बिछड़ गए
कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा
एक दिल के टुकड़े हज़ार हुए...
रह-रह के हँसा है मेरी हालत पे ज़माना
क्या दुःख है मुझे ये तो किसी ने भी न जाना
खामोश मोहब्बत लिए फिरता ही रहा हूँ
मैं ज़िन्दगी में हरदम रोता ही रहा हूँ...
तेरे जहाँ से मालिक बता किधर जाये
तेरे हुज़ूर में रह कर भी ठोकरें खाये
गरीब ही सही आखिर तो हम तुम्हारे हैं
हमे भी दे दो सहारा, के बेसहारे हैँ...
वो जुदा क्या हुए ज़िंदगी खो गई
शम्मा जलती रही रोशनी खो गई
बहुत कोशिशें कीं मगर दिल न बहला
कई साज़ छेड़े कई गीत गाए
वो जब याद आये बहुत याद आये...
अब आगे जो भी हो अंजाम, देखा जाएगा
ख़ुदा तलाश लिया और बंदगी कर ली
मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली
बस इसी तरह से बसर हमने ज़िंदगी कर ली...
ऐसे हज़ारों गीत हैँ, लिखते-लिखते हाथ थक जायेंगे पर गीत कम नही होंगे। आख़िर में बस इतना ही कहूँगा..
तुम हो सहरा में तुम गुलिस्ताँ में
तुम हो ज़र्रों में तुम बयांबां में
मैं ने तुम को कहाँ कहाँ देखा
चूप के रहते हो तुम रग-ए-जाँ में
तुम मेरे पास होते हो, कोई दूसरा नहीं होता...