मीलों की दूरी......................
सफर कोई भी हो लम्बा लगता है,
दूर कितने भी चले जाओं सब लाहासिल सा लगता है,
परछाई के अलावा कोई साथ नहीं देता,
ये भी तो कम्बख्त अंधेरे में साथ छोड़ देता है,
रात और दिन तो सपनों के नाम कर दिया,
थोड़ा समय अपनों के नाम कर दिया,
फिर भी दोनों की शिकायतें खत्म नहीं होती,
एक असफल कर हमसे अपनी नाराज़गी जताता है,
तो दूसरा गिला करने से बाज़ नहीं आता है,
राह हो या ख्वाबों की मंज़िल बड़ी दूर जाकर बैठी है,
हम नहीं कहते तू नज़दीक आ,
बस मेरी मेहनत पर थोड़ा तो तरस खा,
ये क्या कम है कि तुझसे तुझको मांग रहे है,
वरना तेरी नज़रे गवाह है तुझे ज़िद्द मानने वाले,
बिना कोशिश के तेरी राह से खाली हाथ लौटे है,
सिर झुका हर रोज़ तेरे पूरे होने कि दुआ करते है,
ऐ सपने हम तो चाँद - तारों से भी यहीं फरियाद करते है,
कोई तो हो जो पहुँचा दे मेरी अर्ज़ी उस खुदा तक,
मीलों दूर बैठ गया है वो जा कर,
तभी तो सपने की कुछ झलक नींद में भेज देता है,
लेकिन हक़ीकत में तब्दील करने से वो भी ड़रता है.