मैं अदना सा एक फूल मेरी इतनी सी है आरजू
नहीं है मुझे किसी हसीना के गजरे की जुस्तजू
नहीं चाह सुंदरी की माला में पिरोया जाऊँ
नहीं चाह किसी उत्सव पर सजाया जाऊँ
नहीं चाह किसी वरमाला में मैं गुथा जाऊँ
नहीं चाह अमीरों के बागों में खिल इतराऊँ
नहीं चाह देवों के गले का मैं कभी हार बनूँ
नहीं चाह किसी नेता अभिनेता के गले लगूँ
नहीं चाह नवाबों के दीवान ए खास में बैठूँ
मेरी बस एक छोटी सी यही रही है अभिलाषा
देश के वीर शहीद के चरण स्पर्श का मैं प्यासा
उनकी चिता में जल कर मैं ख़ाक में मिल जाऊँ
या फिर किसी निर्जन वन उपवन में जन्म पाऊँ
मिट्टी से जन्मा फिर देश की मिट्टी में मिल जाऊँ