खुशिया कम और फरमाईशे बहोत है,
जिसे भी देखो यहा परेशान बहोत है।
करीब से देखा तो निकला कागज का घर,
मगर दूर से इसकी शान बहोत है।
कहेते है सचका कोइ मुकाबला नही,
मगर आज झूठकी पहेचान बहोत है।
मुश्किल से मिलता है शहरमें सच्चा आदमी,
यूँ तो कहने को इन्सान बहोत है।
-Daxa Bhati