प्रार्थना का अर्थ होता है-परमात्मा का मनन और उसकी अनुभूति। प्रार्थना हृदय से की जाती है। प्रार्थना तभी पवित्र होती है, जब मन राग-द्वेष से मुक्त होता है। प्रार्थना का मतलब ही होता है परम की कामना। प्रार्थना से बड़ा बल, विश्वास, प्रेरणा, आशा और सही मार्गदर्शन मिलता है । ऐसा करने से पाप का विनाश होता है और मानवीय गुण जैसे दया, अहिंसा, ममता, परोपकार, सहनशीलता, सहयोग, सादगी, उच्च विचार आदि पैदा होते हैं, उनका विकास होता है । विपत्ति, निराशा और संकट के समय प्रार्थना से बड़ा बल, आत्मविश्वास और शांति मिलती हैं ।एक परमेश्वर ही सब कुछ का स्रोत है। इसलिए, हम प्रार्थना में अपनी और अन्य विश्वासियों की आत्मिक उन्नति, पवित्रता में वृद्धि, परिपक्वता इत्यादि में बढ़ने एवं परमेश्वर को और अधिक जानने के लिए प्रार्थना करते हैं।
जब आप मंदिर जाएं तो दर्शन करने के बाद मंदिर परिसर में कुछ देर जरूर बैठें, दर्शन का ध्यान करें, यह प्रार्थना करें।
प्रार्थना -श्लोक :
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
अर्थात
(१) अनायासेन मरणं – हे ईश्वर जब मृत्यु दें तब बिना तकलीफ के मृत्यु दें ।
(२) विना दैन्येन जीवनम् – ऐसा जीवन दें जो आत्म निर्भर हो, स्वयं चल सकूं, बोल सकूं, बैठ सकूं, उठ सकूं, भोजन कर सकूं, किसी पर निर्भर न होऊं ।
(३) देहान्ते तव सानिध्यम – जब मृत्यु आए तब सिर्फ तुम्हारा दर्शन हो
देहि मे परमेश्वरम – हे प्रभु, मुझे ये आशीर्वाद दें ।
Translation in English:
O God, please
(1) Give me death without pain.
(2) Grant me a life where I am not dependent on anyone
(3) At death I see only you only
Please grant me these three wishes
यह प्रार्थना है, प्रार्थना का मतलब request होता है, प्रार्थना का मतलब पवित्र रिक्वेस्ट, उत्तम रिक्वेस्ट।
अगर यह प्रार्थना न कर सकें तो कोई बात नही, थोड़ी देर चुप चाप शांति से आँखें बंद कर के बैठें व आँखों में जिस प्रभु का दर्शन किया है उसे देखें।
प्रस्तुतकर्ता डॉ भैरवसिंह राओल