#बोधकथा
"चूहे कम हैं चीलें ज्यादा" एक बार एक चील एक चूहे को लेकर उड़ रही थी। कोई पच्चीस चीले उसका पीछा कर रही थीं, झपट्टे मार रही थीं। इसी झगड़े में पहली वाली चील के मुंह से चूहा छूट गया।
छूटते ही पीछे वाली सारी चीलें उसे छोड़कर चूहे के पीछे भागी।
पहली चील अब अकेले उड़ते हुए सोच रही थी, इनमें से कोई भी मेरे खिलाफ न था। मैंने चूहे को पकड़ा था और ये भी उसे पकड़ना चाहती थीं।
‘चूहे के छूटते ही बात खत्म हो गयी, कोई दुश्मन न रहा। अगर सारे लोग तुम्हारे दुश्मन हैं या तुमसे जलते हैं तो निश्चित ही तुमने कोई सफलता, धन या पद का 'चूहा' अपने मुंह में पकड़ रखा होगा। कभी इस गुमान में ना रहना कि तुम इतने बड़े हो जाओगे कि पूरा संसार तुम्हारा दुश्मन बन जाए।लड़ाई सिर्फ चूहे को पाने की है क्योंकि चूहे कम हैं और चीलें ज्यादा।