एक ख्वाहिश छोटी सी मेरी
सारे जहां की खुशियां जिसमें
ज़्यादा कुछ नहीं बस
एक ज़रा सी ही तो है , बड़ी प्यारी सी
दिल के कोने में कहीं दबी , सहमी हुई सी
जानती हूं कभी पूरी नहीं होगी
लेकिन जो पूरी हो जाए
वो फिर ख्वाहिश कहां रहती है
शायद इसे मेरी आदत सी हो गई है
हर पल मेरे दिल में ही रहती है
मुझसे जुदा हो गई तो कौन पूछेगा इसे
शायद इसलिए पूरा होने से डरती है
एक ख्वाहिश छोटी सी मेरी... !
-अनुभूति अनिता पाठक