विषय - एक दोस्त
बन बैठा था एक प्यारा सा दोस्त,
जाने कहां वो चला गया है।
ऐसी हमनें खता क्या कर दी,
जो मुझे छोड़कर कहां गया है।।
जब मिला था वह तो हमसे,
अपनी कच्छी पक्की बातें बताता था।
कुछ ही आती थी हमको समझ में,
कुछ सिर से उड़ जाता था।।
हम तो ठहरे सरल स्वभाव के,
सत्य हमेशा ही बोलते है।
नहीं घुला फिरा के बातें आती है,
और न ही किसी को तौलते हैं।।
वह तो अपनी हर एक बात को,
घुमा फिराकर ही मोड़ता है।
जब भी उसे जानने की कोशिश करती हूं,
वह तो अधूरे शब्दों को बोलता है।।
पता नहीं क्या राज है जिंदगी का,
जो वह हमसे छुपाना चाहता है।
अपनी जिंदगी के विषय में वह कुछ,
क्यों नहीं हमें बताना चाहता है।।
लगता है उसे देशप्रेम हैं प्यारा,
इस लिए ही किसी बंधन में नहीं पड़ना है।
खुद का जीवन लगा है दांव पर,
किसी और को रोने के लिए पीछे नहीं छोड़ना है।।
जहां तक भी मैंने उसे जाना है,
लगता वह तो खतरों का खिलाड़ी है।
शायद किसी खूफिया एजेंसी का,
वह तो लगता अधिकारी है।।
मेरा सोचना अगर गलत नहीं तो,
रॉ एजेंट भी वह हो सकते है।
देश पर वह तो मर मिटने के लिए,
तत्पर हमेशा ही हो सकते हैं।।
पता नहीं वह जो भी है,
पर इंसान तो लगता प्यारा है।
देश पर मिटने वाला हर शख्स,
लगता है जैसे हमारा है।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री