व्यक्तिवाद पर जब रिश्तेदारवाद हावी हो जाये तो समझ लेना चाहिए आपकी सोच समझ,कहना सुनना ,खाना पीना ,उठना बैठना, चलना फिरना, देखना इन सब क्रियाओं को आप स्वयं नहीं कर रहे हैं यानी आप जीवित रूप में एक शव की भांति है और उसमें व्यवहार करने वाली समस्त ऊर्जा रिश्तेदार और समाज है
इसी जकड़न और घुटन से लड़ाई में पश्चिमी सभ्यता का वेंटिलेटर कार्य कर रहा है । क्योंकि
व्यक्तिवाद के स्वतंत्र निर्णय पर समाज हावी होता है जिन्हें हम पड़ोसी, रिश्तेदार और सगे सम्बन्धी कहते हैं ऐसे में उस समाज की सभ्यता पर दूसरी संस्कृति धावा बोल देती है अपितु हम सुधार करने की बजाय पश्चिमी सभ्यता के फैलाव को रोकना चाहते हैं इसलिए टकराव की स्थिति बरकरार है।
-गायत्री शर्मा गुँजन