शीर्षक: फ़लसफ़ा मुस्कराने का
मुस्कराने में अगर कोई साजिश न हो
तो फूलों को महक की जरूरत न हो
जज्बातों में अगर चिंतन न बिखरे हो
किसी यकीन में जीने की वजह न हो
हर मुस्कराहट में गैर दर्द की समझ हो
समझ के हर कर्म में भावना मसीहा हो
धर्म आत्मा में अगर हर रोज दहकता हो
यकीनन वही मुस्कराहट कहलाने योग्य हो
कहने से कोई युग-परिवर्तन नहीं होता
देखा है हर कथनी करनी में अंतर होता
खुद को भगवान न समझ जो मुस्कराता
सत्य के गगन में चाँद की तरह उभरता
फ़लसफ़ा मुस्कराहट में इतना ही होता
कभी पल में भी दूरी का अहसास होता
छोटा जीवन अनगनित चाहों में खो जाता
स्वार्थी राहों में मुस्कान स्वार्थ छिपा जाता
✍️ कमल भंसाली